top of page
Search
Writer's pictureMarwad.Org

सिरोही नगर की स्थापना

खरगोश ने जहां दिखाई थी वीरता वहीं रखी नींव , 1425 ई . में हुई थी सिरोही नगर की स्थापना


सिरोही .नगर की स्थापना आखातीज की बीज को गुरुवार के दिन १४२५ ई. में हुई थी। तब राजपूतों में आखातीज पर शिकार से वर्षभर का शकुन देखा जाता था । इसमें खरगोश का शिकार ही अनिवार्य था ।

महाराव सहस्त्रमल भी परंपरा कायम रखने के लिए दूज को सारणेश्वर मार्ग के बिजोला की ओर करीब ५०० घुड़सवार तथा २५ लाऊरी श्वानों के साथ रवाना हुए। राजा का कारवां गुजरने के दौरान नर खरगोश झाडिय़ों से निकला और आबू की ओर करीब एक किलोमीटर भागा। उसके पीछे सभी श्वान भी पड़े हुए थे। एक स्थान पर खरगोश आक्रमण की मुद्रा में खड़ा हो गया। उसके पास एक भी श्वान नहीं जा रहा था। घेरा बनाकर दूर से ही भौंकने लगे। महाराज सहस्त्रमल ऐसा देख हैरान हो गए और सरदार से पूछा कि अभी तो खरगोश जोर से भाग रहा था लेकिन अचानक ये क्या हुआ? इस पर सरदार ने कहा कि यह वीर भूमि है। यह अब शेर हो गया। इसके बाद राजा ने शिकार कर लिया और उस स्थान पर पेड़ गाड़ दिया। उसके बाद यहां पीले रंग का बड़ा पत्थर भी स्थापित किया। इस तरह सिरोही की नींव पड़ी।


इसलिए दिया नाम

सिरोही की तलवारें विश्व प्रसिद्ध हैं। तलवार का पर्यायवाची सि-रोही यानी सिर काटने वाली, इसलिए इसका नाम सिरोही पड़ा।


नहीं की अधीनता स्वीकार


राजपूताना के राजपूत कुलों ने आन-बान-शान की खातिर सर्वस्व अर्पण कर दिया था। इन्हीं राजपूत कुलों में से एक है सिरोही का देवड़ा राजवंश जो चौहान राजपूत वंश की ही एक शाखा है। कर्नल जीवी मेलसन ने अपनी पुस्तक ‘नेटिव स्टेट्स ऑफ इंडिया’ में लिखा है कि राजपूताना में केवल सिरोही ही ऐसा राज्य है जिसने मुगल, मराठा, और राठौड़ों की अधीनता स्वीकार न कर स्वतंत्रता कायम रखी। जालोर के सोनगिरे चौहान राजा समरसिंह के पुत्र मानसिंह के वंश में सिरोही के राजकर्ता थे। मानसिंह को मानवसिंह/ महणासिंह या महणसी भी कहा गया। उनका पुत्र प्रतापसिंह और उनका बीजड़ हुआ। बीजड़ के बाद लूंभा उत्तराधिकारी हुआ। महाराव लूंभा ने परमारों से आबू और चन्द्रावती को छीना और वहां राजधानी स्थापित की। तत्पश्चात तेजसिंह कान्हड़देव, सामन्तसिंह, सलखा, रणमल और शिवभाण राजा हुए।


इस वक्त तक देवड़ों की राजधानी चन्द्रावती ही थी किंतु बादशाही आक्रमणों की वजह से एक निरापद राजधानी की खोज में महाराव शिवभाण ने वि.सं १४६२ (ईस १४०५) को शहर बसाकर पहाड़ी पर किला बनवाया। यह शहर महाराव शिवभाण के नाम से शिवपुरी कहलाया। अब यह खण्डहर के रूप में है और पुरानी सिरोही कहलाता है। शिवभाण के बाद उनके पुत्र सहस्त्रमल्ल ने विसं १४८२ (ई. १४२५) वैसाख सुदी २ (द्वितीया) को वर्तमान सिरोही बसाया और आस-पास का क्षेत्र जीतकर राज्य का विस्तार किया। इसी देवड़ा वंश में बाद में महाराव सुरतान हुए जिन्होंने मुगल बादशाह अकबर की सेना को दत्ताणी के युद्ध (वि.स १६४०) कार्तिक शुक्ल एकादशी को धूल चटा दी थी।


सिरोही नरेश रघुवीर सिंह जी
रघुवीर सिंह जी

इतिहासकार मेलसन के कथनुसार सिरोही का इतिहास गौरवमयी रहा है। माउंट आबू गुरु वशिष्ट की तपोभूमि रहा है। जैन तीर्थंकर के कलापूर्ण मंदिर देलवाड़ा इसकी गाथा गाते हैं। गौरीशंकर, हीराचन्द्र ओझा जैसे इतिहासकार यहीं के थे। स्वाधीनता आंदोलन में महात्मा गांधी और सरदार पटेल के सहयोगी गोकुल भाई भट्ट भी माउंट के ही थे। सिरोही की सांस्कृतिक विरासत में अचलगढ़, बसंतगढ़, कोलरगढ़, वरमाण तथा सारणेश्वर का अनूठा इतिहास रहा है!!

🚩जय राजपुताना...

बल हट बंका देवड़ा जय श्री राजपूताना जय श्री राजवंश सिरोही राजपूताना स्टेट🚩

इरादे हो शिला जैसे,

गगन से दूर मंजिल हो ,

वही क्षत्रिय असली है,

जिसे न चैन हासिल हो ,


भुजाएं सिंह सी फडके,

खडग रह रह के यूँ खडके,

लहू की चाल ऐसी हो ,

जवानी जंग को तडपे ,


उसे ही राह कहते है,

जहाँ की चाह मुस्किल हो,

इरादे हो शिला जैसे,

गगन से दूर मंजिल हो ...


हवाएं काँप के गुजरे ,

दहक ऐसी जगाओ ना,

चलो संग्राम की बेला में,,

फिर जय घोष गाओ ना ,


उठो यूँ झूमकर ठाकुर ,

चलो मेले में शामिल हो ,

इरादे हो शिला जैसे,

गगन से दूर मंजिल हो ...


धरा का मान है तुमसे ,

गगन की शान है तुमसे ,

हजारो सिर झुके जिस पे ,

वही अभिमान है तुमसे ,


नयी पीढ़ी जिसे पूजे ,

तुम्ही वो शौर्य हो बल हो ,

इरादे हो शिला जैसे,

गगन से दूर मंजिल हो ..... जय सारणेश्वर महादेव जय राजपूताना 🚩🙏

सिरोही पूर्व नरेश श्रीमान रघुवीर सिंह जी


52 views0 comments

Commenti


bottom of page